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Just Transition Research Fellowship – IIT Kanpur
and Climate Trends

जस्ट ट्रांजीशन के बारे में क्या सोचते हैं मज़दूर यूनियन

Research fellow - मनोज कुमार सिंह

Place- झारखंड

मजदूर संगठनों के साथ चर्चा करते हुए. फोटो: मनोज सिंह

1. प्रस्तावना

ग्लासगो पर्यावरण सम्मेलन के बाद विश्व के सभी देशों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने का निर्णय लिया है. इस मुद्दे को लेकर गंभीर देशों ने बिगड़ते पर्यावरण को सुधारने के लिए एक टाइम लाइन तय किया है. सभी देशों ने अपने-अपने हिसाब से काम करने का निर्णय लिया. भारत सरकार ने भी पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए कई एजेंडा सेट किया. भारत ने भी तय किया है कि गैर पारंपरिक ऊर्जा अाधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जायेगा.

भारत ने अब तक तय नहीं किया है कि कब तक कोयला उत्पादन को कम किया जायेगा. फिर यह निश्चित है कि 2030 तक भारत में कोयले का उत्पादन लगभग डेढ़ बिलियन टन तक पहुंच जायेगा. हालांकि भारत का रुख फॉसिल फ्यूल फेज आउट की तरफ भी साफ है. भारत को पता है कि कुछ दशकों के बाद इसका इस्तेमाल कम होगा. उस समय जो लोग फॉसिल फ्यूल इको सिस्टम से जुड़े हैं, उनके लिए नये काम के साधन क्या होंगे और उसके लिए अभी से क्या काम होगा, इस मुद्दे पर अभी से बातचीत शुरू हो गयी है.

अंतर मंत्रालय कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अभी भी 75 फीसदी से अधिक ऊर्जा उत्पादन का स्त्रोत कोयला ही है. भारत में आने वाले 100 से अधिक साल का कोयला खोजा जा चुका है. इसका खनन होना बाकी है. अाज भी यह चर्चा नीति निर्माता या इस विषय से सीधे जुड़े उच्च स्तर के लोगों तक ही है. अब धीरे-धीरे इसे जमीन पर उतारने की तैयारी हो रही है.

जब यह चर्चा होने लगी तो लगा कि भारत में कई राज्य ऐसे हैं, जहां की आजीविका या आय का बड़ा साधन कोयला है. इसमें झारखंड भी एक राज्य है. जहां की आबादी सवा तीन करोड़ से अधिक है. यहां के 24 में से 12 जिलों (रांची, हजारीबाग, लोहरदगा, रामगढ़, कोडरमा, गिरिडीह, चतरा, लातेहार, पलामू, धनबाद, बोकारो, जामताड़ा) में कोयला उत्पादन होता है. कोल इंडिया की तीन कंपनियां (सीसीएल, बीसीसीएल और इसीएल) यहां खनन करती है. एक कोयला पर रिसर्च और प्लानिंग करने वाली कोल इंडिया की कंपनी कोल माइंस प्लानिंग एंड डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट (सीएमपीडीअाइ) है. तीनों खनन कंपनियों के कुल 164 खदान अभी चल रहे हैं. इसमें इसीएल के 17, बीसीसीएल के 98 तथा सीसीएल के 49 खदान हैं. इसके अतिरिक्त टाटा और एनटीपीसी का भी अपना कोलियरी है. केवल कोल इंडिया की इन तीनों कंपनियों में 85000 कर्मचारी अधिकारी काम करते हैं. एक जनवरी 2023 के कोल इंडिया के आकड़े के अनुसार बीसीसीएल में 37585, सीसीएल में 35239 तथा सीएमपीडीआइ में 2886 अधिकारी और कर्मचारी हैं. इसके अतिरिक्त करीब 10 हजार कर्मचारी और अधिकारी इस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड (इसीएल) के झारखंड के खदान में काम करते हैं. करीब इतनी ही संख्या में ठेका श्रमिक हैं.

इसी तरह एनटीपीसी और टाटा के कोलियरी में भी एक हजार से अधिक लोग काम करते हैं. यह वैसे लोग हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से कोयला कंपनियों से जुड़े हैं. इस कारोबार से अप्रत्यक्ष लोग बड़ी संख्या में जुड़े हैं. झारखंड में कुछ जिले (धनबाद, रामगढ़, हजारीबाग आदि) तो ऐसे हैं, जहां की पूरी व्यवस्था कोयला पर आधारित है.