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आज के महाधिवेशन सत्र का विषय: "नदी संरक्षण समन्वित कृषि" राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (GoI) और cGanga (IIT कानपुर) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित 5 वें इंडिया वॉटर इम्पैक्ट शिखर सम्मेलन (IWIS) के चतुर्थ दिवस के सत्रों मे नदी संरक्षण समन्वित कृषि पर विचार विमर्श किया गया। प्रथम सत्र में विभिन्न कृषि प्रथाओं और प्रोटोकॉल जैसे कि जैविक खेती, फसल के पैटर्न, नहर सिंचाई के स्वचालन और संबंधित डेटा, उपयुक्त फसल के चयन, मोटे अनाज की कृषि के फायदे एवं प्राथमिकता आदि पर चर्चा की गई। चर्चा में सिंचाई के लिए कृषि सहित कृषि जल संरक्षण के मुद्दों को शामिल किया गया। सूक्ष्म जल संवर्धन, स्थानीय जल प्रबंधन समूह और सिंचाई जल की बचत पर क्रॉस-सब्सिडी देना इत्यादि चर्चा के मुख्य बिन्दु रहे। कृषि उत्पादन का वास्तविक मूल्य कृषि मे पनि-बिजली की खपत, एवं मृदा तथा अन्य परावर्णीय तत्वों पर प्रभाव के मूल्य को भी उत्पादन लागत के रूप मे दिखाया जाना चाहिए ताकि उपभोक्ता समझ सके की जो उत्पाद उनके पास या रहा है उसकी वास्तविक मूल्य उसकी कीमत से कहीं अधिक है। पेरी-शहरी क्षेत्रों में कृषि और बागवानी को बढ़ावा देने, रासायनिक उर्वरकों को कम करने और मृदा रहित खेती को बढ़ावा देने पर भी चर्चा की गई। नदियों के पानी का उचित उपयोग एवं प्रबंधन के लिए स्थानीय स्तर पर नदी घाटी प्रबंधन संस्थान बनाए जाने की आवश्यकता प्रकट की गई। रासायनिक उर्वरकों से होने वाले जल प्रदूषण का पता करने के लिए आइसोटोप स्टडीस एवं जल के माइक्रो मैनिज्मन्ट के महत्व पर विचार मंथन किया गया।
डॉ अलका भार्गव, अतिरिक्त सचिव, कृषि सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग ने नदी प्रदूषण को कम करने के लिए नदियों के पास के खेतों के लिए जैविक खेती की आवश्यकता पर बाल दिया। मोर क्रॉप पर ड्रॉप’ को यथार्थ करने के लिए डॉ भार्गव ने मृदा स्वास्थ सुधार सूक्ष्म सिंचाई और आईसीएआर के "इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम" के अनुप्रयोग पर जोर दिया और कहा कि इनका प्रचार सरकार द्वारा एफपीओ के माध्यम से किया जा रहा है। इसके अलावा, "वोकल फॉर लोकल" नीति के तर्ज पर स्थानीय खाद्य बाजारों के लिए सूक्ष्म खाद्य उद्यमों की मदद की जा रही है, जबकि जैव ईंधन, बागवानी, औषधीय पौधों और काले चावल के उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। डॉ नीलम पटेल, वरिष्ठ सलाहकार, नीति आयोग ने पोषण सुरक्षा एवं इस हेतु मोनोकल्चर के स्थान पर फसल विविधीकरण पर जोर दिया। तथा यह भी बताया कि वर्ष 2018 के बाद से, नीती आयोग प्राकृतिक खेती और फसल नुकसान को कम करने के लिए सामुदायिक खेती की संपत्ति विकसित करने की सिफारिश कर रहा है। उपरोक्त सत्रों में कृषि, नदी संरक्षण, सामाजिक विकास, प्रौद्योगिकी और ज्ञान के अतिव्यापी विषयों को कवर करने वाली व्यापक चर्चाओं ने नदी संरक्षण के साथ कृषि विकास के समन्वय के लिए कई नए उपाय सुझाए। प्लेनरी सत्र के बाद, शिखर सम्मेलन ने जल क्षेत्र संबंधित वित्त और पर्यावरण प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे नवाचर आधारित प्रस्तुतियों पर विचार-विमर्श को जारी रखा। |