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कानपुर, 17 सितंबर 2025: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया, जिसका विषय रक्षा क्षेत्र में मानव-केंद्रित डिजाइन (Human-Centred Design - HCD) था। कार्यक्रम में शिक्षा, रक्षा और उद्योग से जुड़े प्रमुख विशेषज्ञ शामिल हुए। यह कार्यशाला DIA–COE (डिफेंस इनोवेशन एक्सेलेरेटर फॉर सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज – सेंटर ऑफ एक्सीलेंस) के अंतर्गत आयोजित की गई थी। कार्यशाला की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुई। इस अवसर पर आईआईटी कानपुर के प्रोफेर्स और रक्षा अनुसंधान से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया, जिनमें श्री एल.सी. मंगल (डीएस और डीजीटीएम, DRDO), श्री संजय टंडन (निदेशक, DIA–COE), प्रो. तरुण गुप्ता (डीन, रिसर्च एंड डेवलपमेंट), प्रो. सत्यकी रॉय (प्रमुख, डिज़ाइन विभाग) और असोसिएट प्रोफ्रेसर विकेक कांत, डिजाइन डिपार्टमेंट, आईआईटी कानुपर शामिल थे। कार्यक्रम में श्री संजय टंडन ने स्वागत भाषण में कहा कि, "मानव-केंद्रित डिजाइन सिर्फ एक सोच नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है। कोई भी तकनीक तभी सफल मानी जाएगी, जब वो सैनिकों के लिए समझने में आसान, उपयोग में आसान और उनके लिए उपयोगी हो।" DRDO के श्री एल.सी. मंगल ने कहा कि, किसी भी रक्षा तकनीक का असली मूल्य तभी है, जब वो सैनिकों के लिए उपयोगी और सुविधाजनक हो। उन्होंने सुझाव दिया कि DRDO में मानव-केंद्रित डिजाइन पर एक अलग सेक्शन शुरू होना चाहिए और IIT कानपुर को इसमें पूरा सहयोग दिया जाएगा। प्रो. तरुण गुप्ता ने कहा, "हमारी रिसर्च को केवल कागज तक सीमित नहीं रहना चाहिए, उसे ज़मीनी स्तर पर काम करने लायक बनाना ज़रूरी है।" प्रो. सत्यकी रॉय ने कहा, "तकनीक में इंसानियत और समझ जरूरी है। अगर हम सिर्फ मशीन पर ध्यान दें और सैनिकों की ज़रूरत न समझें, तो तकनीक फेल हो सकती है।" प्रो. विवेक कांत, जो इस कार्यशाला के मुख्य संयोजक थे, उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम इस सोच के साथ बनाया गया है कि कैसे हम सैनिकों की असली समस्याओं को समझें, उनका समाधान खोजें और इस दिशा में मिलकर एक रोडमैप तैयार करें। आगे उन्होंने बताया कि अकादमिक जगत, रक्षा संस्थान और उद्योग एक साथ मिलकर काम करें, तो अच्छे और टिकाऊ समाधान निकाल सकते हैं। कार्यशाला में विंग कमांडर सिद्धार्थ सिंह (रिटायर्ड) ने भी हिस्सा लिया, जो 3,000 घंटे से ज़्यादा की उड़ान का अनुभव रखते हैं। उन्होंने बताया कि फाइटर प्लेन की कॉकपिट डिज़ाइन में क्या चुनौतियां आती हैं और कैसे एक छोटी गलती जानलेवा बन सकती है। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि डिज़ाइन इस तरह हो कि पायलट को कम से कम सोचना पड़े और चीज़ें अपने आप समझ में आएं। इसके अलावा IIT बॉम्बे, IIT गुवाहाटी, IIT इंदौर और कई अनुभवी डिज़ाइनरों ने भी हिस्सा लिया और बताया कि कैसे अच्छी डिज़ाइन सैनिकों के काम को आसान बना सकती है। बाद में एक ब्रेनस्टॉर्मिंग सेशन भी हुआ जिसमें टीम्स ने मिलकर सोचा कि सैनिकों को क्या दिक्कतें आती हैं और उनके लिए कैसी तकनीक बनाई जा सकती है। जो सुझाव इस सेशन से आए, उन्हें एक "व्हाइट पेपर" यानी एक रिपोर्ट के रूप में तैयार किया जाएगा, जो आगे की रिसर्च और नीति निर्माण में काम आएगी। कार्यशाला के अंत में यह साफ हुआ कि IIT कानपुर सिर्फ नई तकनीक बनाने में ही नहीं, बल्कि तकनीक को इंसानों के लिए आसान और उपयोगी बनाने में भी आगे है। DRDO और उद्योग के साथ मिलकर संस्थान ऐसी तकनीकें बना रहा है जो हमारे सैनिकों के जीवन को सुरक्षित, सरल और बेहतर बनाएंगी। IIT कानपुर के बारे में: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर की स्थापना 1959 में हुई थी और इसे भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह संस्थान विज्ञान और इंजीनियरिंग शिक्षा में उत्कृष्टता के लिए जाना जाता है और दशकों से अनुसंधान एवं विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता आ रहा है। IIT कानपुर का 1,050 एकड़ में फैला हरा-भरा परिसर शैक्षणिक और अनुसंधान संसाधनों से भरपूर है। इसमें 19 विभाग, 26 केंद्र, 3 अंतरविषयी कार्यक्रम, और 2 विशेषीकृत स्कूल शामिल हैं, जो इंजीनियरिंग, विज्ञान, डिजाइन, मानविकी और प्रबंधन के क्षेत्र में कार्यरत हैं। संस्थान में 590 से अधिक पूर्णकालिक शिक्षक और 9,500 से अधिक छात्र अध्ययनरत हैं। अधिक जानकारी के लिए देखें: www.iitk.ac.in. |
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